दिनचर्या प्रभात समयी कर्णकर्कश गजर वाजती! |
अंगावरचे पांघरलेले त्यासव दूर होती!! |
बहु वाटे पडुनी राहावे आणखी थोडे काले! |
परी लागे उठावे टाकोनी आळस नाईलाजे!! |
होती प्रारंभ तदनंतर प्रातःकालची कार्ये! |
यंत्रवयत होती सर्वे तोची काले तोची क्रमे!! |
तेल लावू केस विंचरू अंती वस्त्रे चढवुनी! |
करितो दिनआरंभ श्री अथर्वशिर्ष वाचोनी!! |
कडीकोयंडा करू घरा निघतो ठेवुनी रिक्त! |
घर म्हणतो त्यासी चार भिंती वर छत फक्त!! |
कार्यशाळेत घालवूनी वेळ परतितो घरी! |
ताजातवाना होऊनी करितो उद्याची तैयारी!! |
सर्व आवरता उरतो वेळ आता नाही खैर! |
विचार ऐसे थैमान मांडती करिती बेजार!! |
बेधुंदीत त्याच निघतो करण्यास रात्रौभोज! |
धुंदीची नाशहि कैसी अर्जुनावस्था खाशी! |
मार्गाती वर्दळ भारी गोंगाट नि तुफान गर्दी! |
खिजगणतीत नसे हे नजर ती आत्मकेंद्री!! |
कधी आवडती कधी नावडती ताटीत भाजी! |
तक्रार ती करू कोणा अंती पराठा-दही तरी!! |
शतपावले होता होता आली दिनचर्या अंती! |
तैसे मी, एकटेपणा अन दूरदर्शन साथी!! |
पांघरून घेउनी करितो निद्रेची आराधना! |
करण्या दिनआरंभ पुनः गजर वाजताना!! |
शोध.माझा
19 February 2012
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